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प्रकृति का अर्थ क्या होता है

प्राकृतिक असन्तुलन में इन्सान की भुमिका

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प्रकृति का अर्थ क्या होता है
                                   
पीछले लेख में हमने देखा की कुदरत के कानून द्वारा प्रकृति चलती है| उसकी एक व्यवस्था होती है| अगर इस व्यवस्था पर तनाव आ जाए, तो प्रकृति में भी | जैसे गुरुत्वाकर्षण एक नियम है| अगर हम टेढा चलेंगे तो इस नियम के कारण ही गिरेंगे| उसी प्रकार हम और प्रकृति के बीच हमारे कारण तनाव हो सकता है| और इसी वजह से जैसे गलत ढंग से चलने के कारण जैसे गुरुत्वाकर्षण गिराता हुआ दिखाई देता है, उसी तरह हमारी गलतियों के कारण प्रकृति प्राकृतिक आपदाएँ जैसे सूखा, बाढ, बेमौसम बारीश या भूकम्प ला रही है| इस लिहाज़ से एमेट चेंज को ह्युमन चेंज कहा जाना चाहिए| क्यों कि इन सब बदलावों की जड़ मानव ही है| जैसा पीछले भाग में कहा गया, मानव में उपर उठने की या नीचे गिरने की अद्भुत क्षमता है और इसलिए मानव का अस्तित्व बहुत खास बनता है| मानव कुदरत की बेहतर रक्षा भी कर सकता है और उसे तहस नहस भी कर सकता है|


मनुष्यों और प्रकृति के बीचक्या संबंध है

हमे यह समझना होगा की प्रकृति बहुत ही व्यापक है| उसके अनंत विस्तार एवम् आयाम हैं| उसकी अनगिनत अभिव्यक्तियाँ हैं| पृथ्वी की ही बात करेंगे तो पृथ्वी पर सभी तरह के मौसम और सभी तरह की आबो हवा है| माईनस पचास डिग्री से ले कर प्लस पचास डिग्री तपमान की जगहे हैं| उसके साथ रेगिस्तान, हरियाली, पहाड़, बर्फ, नदियाँ, समुद्र, ज्वालामुखी आदि सब तरह के भूप्रदेश है| और यही विविधता जीव जगत में भी होती हैं क्यों कि जीव जगत भी इसी प्रकृति का एक अविष्कार है| इतना ही नही, यही विविधता इन्सान में भी पायी जाती है| पृथ्वी पर अलग अलग जगहों की मानवी संस्कृति में भी बहुत विविधता पायी जाती है| यह सिर्फ भाषा, रंग, वर्ण, शरीर रचना आदि की नही है| इस विविधता के पहलू कई है| जैसे जो प्रदेश बहुत गर्मी होनेवाला होगा, वहाँ के लोग सामान्य तौर पर कम सक्रिय होंगे| क्यों कि गर्म आबो हवा में बिना कुछ किए ही बहुत पसीना/ बहुत ऊर्जा व्यय होती है| इसके विपरित जो प्रदेश ठण्ड होंगे, वहाँ के लोग अधिक सक्रिय होंगे- प्राकृतिक दृष्टी से| जिन कई कारणों की वजह से युरोपियन लोगों ने कई शताब्दियों तक पूरी दुनिया में फैल कर कालनीज बनायी, उनमें से एक कारण यह भी है| युरोप ठण्डा प्रदेश है| और अगर इंग्लैंड की बात करें, तो वह छोटा सा द्वीप है| इसलिए वहाँ के लोगों की आकांक्षाएँ वहाँ पूरी न होना स्वाभाविक था| इस वजह से भी वे लोग बाहर की दुनिया में निकले| और छोटा सा देश होने के कारण राष्ट्रवाद भी बहुत साफसुथरा रहा|

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प्रकृति का अर्थ क्या होता है
                                         
हमारा देश भी दुनिया का छोटा रूप है| यहाँ भी हर किस्म का मौसम, हर तरह की जमीन और आबो- हवा है| और अधिकांश रूप से गर्म प्रदेश होने के कारण बाहर जा कर कहीं फैलना, कहीं संघर्ष करना हमारे स्वभाव में नही है| इसे व्यक्ति अपवाद होंगे, लेकिन समाज का वह स्वभाव नही है| यह सब कहने का कारण इतना ही है कि हम जहाँ होते हैं, उस हिसाब से ही हमारी सोच विकसित होती है| अगर आप देहात में देखेंगे तो जो गाँव बजार का गाँव होगा या जो गाँव हायवे के पास होगा, उसका रहन- सहन सामान्य गाँवों से बिल्कुल अलग होगा|

इसी प्रभाव का एक उदाहरण देखना हो तो वे देश देखिए जहाँ आज पर्यावरण की अधिक देखभाल की जाती है- जहाँ नष्ट होनेवाली प्रजातियों की रक्षा की जाती है- ऐसे देश कौनसे है? ऑस्ट्रेलिया, स्वीडन, डेन्मार्क, दक्षिण आफ्रिका, कनाडा जैसे नाम कई होंगे लेकिन उनमें एक बात बहुत स्पष्ट है- ये देश सम्पन्न है और कम जनसंख्या के देश है| एक वर्ग मील में इन देशों में जनसंख्या कम है| और वहाँ के प्राकृतिक संसाधनों पर इन देशों की जनसंख्या का बर्डन भी कम है| अगर हम आज दुनिया में चल रही चैरिटी पर भी नजर डालेंगे, तो देखेंगे की उसमें भी यही देश ज्यादा तर है जो अन्य देशों में सहायता भेजते हैं या मदद देते हैं| क्या कारण होगा? कारण यही है कि अगर प्राकृतिक सम्पदा पर मनुष्य का बर्डन नही होगा तो मनुष्य को भी उस सम्पदा में बहुत कुछ मिलेगा| मिलता रहेगा| और फिर उसमें देने की वृत्ति भी आ जाएगी| देने की वृत्ति ऐसे ही नही आती है| उसके लिए पहले सम्पन्न होना होता है| सम्पन्न इन्सान ही दे सकता है| और यह भी तब होता है जब प्राकृतिक सम्पदा पर इन्सान का बर्डन न्यूनतम हो| ज़रा इन देशों की हमारे देश से तुलना कर के देखिए! हमारे देश में इन्सान का प्रकृति के उपर बर्डन बहुत ज्यादा है| और प्रकृति के साथ इसकी चोट इन्सान पर भी पड़ती है| इन्सान के जीवन में भी उतना ही संघर्ष, जीने के लिए प्रतिस्पर्धा और तनाव आता है|

और यह स्थिति तब और भी बिगड़ती है जब हम सदियों पुरानी जीवनशैलि आज भी बरकरार रखने की चेष्टा करते हैं| जब इन्सान का प्रकृति पर बर्डन नगण्य था तब पुराने ज़माने की गरीबी में भी एक सम्पन्नता थी| उस कारण वैसी जीवनशैलि रही होगी| जैसे पूरे गाँव को भोजन देना, विवाह में बड़ा समारोह करना, हर पिढी ने खुद का घर बनाना आदि| जब इन्सान का प्रकृति पर बर्डन कम था, तब यह सरल भी था| लेकिन आज- खास कर भारत जैसे देशों में जहाँ इन्सान का प्रकृति पर बहुत ज़्यादा बर्डन है- इस समय ऐसी जीवनशैलि की धारणाएँ बेहुदी होती है| अक्सर हम देखते हैं कि कोई अकेला पैदल या वाहन पर भी जा रहा हो तो सड़क के बीचोबीच ऐसे रूकता है जैसे सड़क पर वह सिर्फ अकेला है, दूसरा कोई भी नही है| हम प्रकृति के साथ भी यही व्यवहार कर रहे हैं|



प्राचीन समय के लुकमान के जीवन मे उल्लेसख है कि एक आदमी को उसने भारत भेजा आयुर्वेद की शिक्षा के लिए और उससे कहा कि तू बबूल के वृक्ष के नीचे सोता हुआ भारत पहुच। और किसी दूसरे वृक्ष के नीचे न तो आराम करना और न ही सोना। वह आदमी जब तक भारत आया, क्षय रोग से पीड़ित हो गया था। कश्मी र पहुंचकर उसने पहले चिकित्ससक को कहा कि मैं तो मरा जा रहा हूं। मैं तो सीखने आया था आयुर्वेद, अब सीखना नहीं है। सिर्फ मेरी चिकित्साे कर दें। मैं ठीक हो जाऊं तो अपने घर वापस लोटू। उस वैद्य न उससे कहा, तू किसी विशेष वृक्ष के नीचे सोता हुआ तो नहीं आया? उस आदमी ने तपाक से कहा: हां मुझे मेरे गुरु ने आज्ञा दी थी कि तू बबूल के वृक्ष के नीचे सोता हुआ जाना।वह वैद्य हंसा। उसने कहा, तू कुछ मत कर। तू अब नीम के वृक्ष के नीचे सोता हुआ वापस लौट जा।‘

वह नीम के वृक्ष के नीचे सोता हुआ वापस लौट गया। वह जैसा स्वाीस्थे चला था, वैसा स्वाास्थू लुकमान के पास पहुंच गया। लुकमान ने उससे पूछा: ‘तू जिन्दाै लौट आया, अब आयुर्वेद में जरूर कोई राज है।' उसने कहा—‘लेकिन मैंने कोई चिकित्साथ नहीं की।' उसने कहा—' इसका कोई सवाल नहीं है। क्यों कि मैंने तुझे जिस वृक्ष के नीचे सोते हुए भेजा था, तू जिन्दां लौट नहीं सकता था। तू लौटा कैसे। क्या  किसी और वृक्ष ने नीचे सोत हुआ लौटा है?' उसने कहा—'मुझे आज्ञा दी कि अब बबूल से बचूं। और नीम के नीचे सोता हुआ लौट जाऊं'। तो लुकमान ने कहा कि उन्हे भी ज्ञान है।

आज हमें प्रकृति बार बार यही बता रही है| हर बार इशारे दे रही है| उसके सिग्नल अब पिले से लाल होते जा रहे हैं| हम को यह सब समझने की आवश्यकता है| हम प्रकृति के साथ जो वर्तन कर रहे हैं, उसकी बड़ी चोट हम सब पर हो रही है| उसका फल हम भुगतने जा रहे हैं| और तथा कथित विकास की चौखट के कारण, उद्योग, आर्थिक अनर्थ आदि के कारण भी हम इस समस्या को और बड़ा कर रहे हैं जिसकी चर्चा अगले भाग में करेंगे|

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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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