मनुष्य और प्रकृति (कुदरत) के बीच क्या संबंध है
मनुष्य और प्रकृति (कुदरत) के बीच क्या संबंध है |
मनुष्य
और प्रकृति (कुदरत) के बीच क्या संबंध है? यह सवाल बिलकुल ही बेमानी
(निरर्थक) है | जो
संबंध हम सभी सदियों से ढूँढते आ रहें हैं वह हम सभी के अंदर, आसपास और हर एक जीवमें ही
हर पल देखा या महसूस किया जा सकता है | कितना भी बुद्धिमान क्यूँ न
हो पर मनुष्य प्रकृति का एक अविभाज्य अंग है | यह भी जान लें की प्रकृतिसे
हम हैं और हमसे प्रकृति नहीं |
असल में जिस ने हमें बनाया, आकार दिया और विकसित किया उस प्रकृति को भूलकर और उसकी करके
अवहेलना हम मनगढंत
भगवानोंकी पूजा अर्चना में मग्न हैं | यह इंसानी प्रजाति की सबसे बड़ी शोकांतिका (Tragedy) है | प्रकृति ही
परमेश्वर है लेकिन मनुष्य जाती का अहंकार, हेकड़ी, घोर अज्ञान और अधपका ‘विज्ञान’ इसी परमेश्वर को चुनौती देने पर
तुला हुआ है |
इसे भी जाने:-प्रकृति का अर्थ क्या होता है
अगर हम केवल पेड-पौधे, वनस्पतियाँ, जंगल, नदियाँ, समुन्दर और जीव-जंतुओंको ही प्रकृति
मान कर चल रहें हैं तो यह सब से बड़ी भूल है क्योँकि प्रकृति इन सभी को खुद में
समायी हुई लेकिन इनसे भी परे एक विशाल, जटिल, संतुलित, गतिशील और सूक्ष्म महाप्रणाली है | हमारे वैज्ञानिक आजतक शायद उसके कुछ ही अंश जान चुके हैं |
प्रकृति ही परमेश्वर है लेकिन मनुष्य जाती का अहंकार, हेकड़ी, घोर अज्ञान और ‘विज्ञान’ इसी परमेश्वर को चुनौती देने पर
तुला हुआ है | परिणामस्वरूप आज मनुष्य जातीपर अस्तित्व नष्ट होने का संकट मंडरा रहा है | दूसरी कई प्रजातियाँ हमारे ही कारण ख़तरेमें हैं |
पृथ्वी पर पैदा होने के बावजूद कुछ हमारी ही रचाई हुई धार्मिक और
आध्यात्मिक मान्यताओंके आधीन हो कर (या अन्धे बनकर) हम किसी दूसरे लोक (स्वर्ग/परलोक/देवलोक)
की स्तुति करते हैं और उसे पाने की आकांक्षा रखते हैं | यह क्या घिनौना मज़ाक है?
प्रकृति और मनुष्य जाती में सबंध के कुछ ना झुटलाये जानेवाले
सच/तथ्य:
१. जैसे शरीर के बाहर विशाल पर्यावास (Ecosystem) है वैसे शरीर के भीतर भी
एक जटिल और विस्तृत पर्यावास है और वह बाहरी
पर्यावास से जुड़ा हुआ रहता है |
२. हमारे शरीर के
अंदर और शरीरके भिन्न भिन्न भागोंमें बसनेवाले जीवाणु (बैक्टीरिया) प्रकृति की देन
है जिन के बिना हम जीवित नहीं रह सकते |
३. हम पृथ्वी और प्रकृति से
मिलनेवाले संसाधनोपर ही निर्भर हैं जिसे हम स्वयं के शरीर के अंदर और शरीर के द्वारा निर्माण नहीं
कर सकते |
४. हमारे शरीर, बुद्धि, चेतना और इन्द्रियोंको इसी सृजनशील प्रकृति ने ही पिछले करोड़ो सालों के दौरान भिन्न भिन्न चरणों में आकार दिया है |
५. शरीर का हर एक कण
इसी धरती के भिन्न भिन्न तत्वों और धातुओंसे
से बना हुआ है | कुछ तत्त्व धरती के बहार से आये हुए
हैं |
६. हर एक जीव इस विशाल, गतिशील और जटिल प्रकृति का एक छोटा प्रतिरूप, प्रयोग और निर्माण यह तीनों ही है |
७. मनुष्यों की ही तरह प्रकृति और भी कई बुद्धिमान जीवोंका निर्माण करने और उनको विकसित करने में मग्न है |
८. प्रकृति ना ही
पूर्ण रूप से क्रूर है या दयालु है | वह तो केवल बदलाव के साथ ढ़लनेवालों का चयन करती है |
९. प्रकृति पर विजय
पाना कठिन ही नहीं बल्कि असंभव है परन्तु उसके अनुसार बदलना भी एक चुनौती है |
१०. मनुष्य प्रजाति अप्राकृति मार्गोंसे से ज़्यादा वर्षोंतक पृथ्वी या दूसरे ग्रहपर टिक नहीं पायेगी |
११. पृथ्वीपर बहुपेशीय जीवन सूक्ष्मजीवोंकी (जीवाणु, विषाणु इ.) कृपा पर निर्भर है |
हम जो नाटकीय बदलाव और प्रकृति का रौद्र रूप देख रहें हैं यह तो बस आंरभ है | प्रकृति इतनी शीघ्रता, आसानी और सहजता से मनुष्य जाती को क्षमा नहीं करेगी | हमारी करतूतोंका
हिसाब-क़िताब हमें चुकाना ही होगा |
परन्तु प्रकृति के ऐसे कई राज़ (रहस्य) हैं जो हमारी बुद्धि से परे
है और वह शायद अनसुलझे ही रहेंगे |
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